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(Naishkarmyasiddhi, 4.76) क्या यहां विष्णु भगवान को परम बोला है

 विष्णोः पदानुगां यां निखिलभवनुदं 
शंकरोऽवाप योगत् 
सर्वज्ञं ब्रहासंस्थं मुनिगणसहितं 
सभ्यगभ्यर्च्य भक्त्य विद्यां गङ्गमिवाहं प्रवरगणनिधेः प्राप्य वेदान्तदीप्तां 
कारुण्यात्तामवोचं जनिमृतिनिवहध्वस्तये 
दुःखितेभ्यः

विष्णोः प्रकृति रूपस्थं यद् न्यायं पदानुगाः यां निखिलभवनुदं शंकरोऽपि महारूद्रेषु सः एकः स शंकारः इत्यार्थः यथा शतपथ वचनं विद्यते वा प्रणो वा रूद्र इत्यादयः तदर्थं मदाय तद प्रकृतिः योगः संयोजनेन वस्तुतन्त्र विद्यां यद्भवति तद शंकरस्य रूपस्थं आत्मोवापि वस्तु तन्त्र संयोग्देव विष्णोः पादात् गंगा रूपमेकं चारूभूतं जलभूतं संकिर्णं गंगोदकं धरति तदेवं आत्मारेपि प्रकृतिः सन्धाने आत्म कर्मणि भावे शरीरोऽस्मि वा इति ज्ञायते तदेव विषयं अत्र च प्रोक्तं अस्मद् प्रत्यागतः कालस्य व्यावहारेपि सर्वज्ञं सदाशिवमेव मुनिना अर्चयन्ति स सदाशिवः एषो वा विष्णोः शिव शक्ति संयोगेन एव विद्यां च ब्रह्म विद्यां प्राप्यते यथा भगिरथः गंगा वाहकं प्राप्तं दुःखेभ्यो शं अर्थः प्रतिपादिताः यदरेपि तोकाय शंनो तद कवेलं शिव निराकारमेकं निरज्जन शिवा अद्वैतेन संभवति इति अर्थः प्रतिपादिताः  यदा विष्णोः एव परमः ह र हकारे रकारे मध्यस्ते अ कारं किमर्थं उक्तं हरिः इति शब्दे इकारंत बीजं किमर्थं अस्ति भवतः अर्थे एको रूद्रो विष्णुः वै उमा इत्यादयः श्रृति विरोधं भवति तस्मात् अगोचरत्वे न प्रकृतिः संयोगं न वियोगं अस्ति तस्मात् यदा संयोगं एव सदाशिवः इति मन्यते तद स्वभावतः बन्धस्य न मोक्ष विधिः इति संख्या सुत्र विरोधः भवति तदा मोक्षरेव न भवति।
विष्णु ही प्रकृति के रूप हैं इस न्याय से गंगा जल विष्णु पाद अर्थात प्रकृति से चलित हुआ है शंकर भी महारूद्र में एक हैं वहीं रूद्र हैं वहीं प्राण हैं शतपथ का वचन है
जब तक आत्मा प्रकृति वश में है यहां आत्मा को चिताभास होता है कि मैं शरीर हूं अब शरीर रहित अर्थात ज्ञान से ही सदाशिव की भक्ति से होता है गंगा जल जिस प्रकार प्राप्त किया वो विष्णु परम प्रकृति से चलित हुआ है।
अब दुःख शं पद से अर्थ किये जाने पर और हकार रकार मध्य में अकारंत हैं उससे शिव शब्द बना है अगर विष्णु भगवान ही परम हैं तो हरि शब्द में इकारंत निपात कैसे हुआ भगवान कृष्ण शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र में बोल रहे हैैं। वेद से परे अर्थात वेद के ज्ञान ऋत इत्यादि युक्त मंत्र के रचने वाले अर्थात जानने वाले हैं ऐसा यहां भेद मानना गलत है क्योंकि एको रूद्र विष्णु वै उमा इत्यादि श्रृति का विरोध होता रूद्रं के प्रकृति च प्रत्यय में अब सदाशिव में संयोग माने तो स्वभावतः बन्दस्य न मोक्ष विधिः सिद्धिः होगा तो किसिको मोक्ष नहीं मिलेगा हर हर महादेव 🙏

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