आर्य समाज के एक मत के अनुसार ईश्वर , आत्मा और प्रकृति अनादि और नित्य है और अलग सत्ता है ।इनके अनुसार आत्मा परमात्मा का अंश नही है क्योंकि आत्मा का स्वाभाविक गुण राग , द्वेष और अल्पज्ञ होने की कारण आत्मा पाप भी करता है । यह है आर्य समाज का सिद्धांत । अब इनके सिद्धांत की समीक्षा की जाए 👇🏻👇🏻👇🏻 १ यदि आत्मा का स्वाभाविक गुण राग और द्वेष है तो इससे तो आत्मा अमर और नित्य नही रहा क्योंकि राग और द्वेष खुद अपने आप में परिवर्तनशील , नाशवान और अनित्य है इससे आत्मा भी नाशवान , परिवर्तनशील और अनित्य सिद्ध हुआ । अब क्योंकि राग और द्वेष जड़ वस्तु पर होते है तो आत्मा भी जड़ सिद्ध हुई , चेतन नही । यहा आत्मा की सिद्धि नही हुई । २ जब आत्मा का स्वाभाविक गुण राग और द्वेष , सुख - दुख है तब तो उसे मोक्ष पाने की भी इच्छा नही हो सकती और ना ही वह कभी आनंद पा सकता तब आत्मा परिवर्तन शील हुआ नित्य नही रहा जब आत्मा नित्य ही नही तो अमर कैसे हुआ❓ ३ राग - द्वेष और सुख दुख प्रकृति से आता है तो इससे तो आत्मा प्रकृति का अंश हुआ अब क्योंकि प्रकृति जड़ है इसीलिए आत्मा भी जड़ ही हुआ । इससे तो साफ सिद्ध हो रहा है कि आत