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Showing posts from January, 2020

क्या भविष्य पुराण मिलावटी हैं?

आज काल कुछ आर्य समाजी लोग भविष्य पुराण को मिलावटी बोलते हैं क्यों की इनका कहना हैं की वहां अंग्रेजी शब्द पाया जाता हैं इसलिए इसके मुख्य कारण हैं अज्ञात भविष्य पुराण में भविष्य का कथन करते हैं इनमें ऐसा शब्द होना और बनना कोई गलत नहीं हैं। अंग्रेजी लेटिन रूस इत्यादि भाषा में संस्कृत का शब्द का प्रत्योत्तर भेद पाया जाता हैं इसे समझने हेतु इस लेख को पढ़ सकते हैं जानुस्थाने जैनुशब्दः सप्तसिन्धुस्थैव च हप्तहिन्धुर्यावनी च पुनर्ज्ञेया गुरूण्डिका रविवारे च सण्डे च फलगुणे चैव र्फवरी षष्टिश्च सिक्सटी ज्ञेया तदुदाहारमीदृशम् भाष्य: भविष्यति इति भविष्यं इत्यैव प्रक्ते जानु सन्धिः स्थाने इति जैनु वा जैन्ट इति ज्ञायते चेत् इति शका प्रतियोत्तरे योवन भाषा मध्ये अर्थे एव मत्वा सप्तसिन्धोः अर्थे हप्त हिन्दोः इति ज्ञेयम् गुरूण्डिका ( गु + रुण्डिका) नाम विख्यातिं प्राप्तः अङ्गल भाषास्तु रविवारे सुनु शब्दे सण्डे इति ज्ञेयम् द्वितीया अर्थे र्फवरी फल्गुणं इति भवेत् षष्ठी उच्यते षषां मध्ये सस् नामधेयम् शब्दं षष्ठी स्यात् इति भावः तददुदाहरं एव दृश्यं इति चैन् । अनुवादः होने वाले भविष्य अर्थ में जानु या जंगा शब्

नास्तिक का पर्दफास क्या उपनिषदों में अश्लील हैं part १

नास्तिक का पर्दफास सब नास्तिक अपने विज्ञान के किताबी ज्ञान से हर विषय में विज्ञान देखने की कोशिश करते हैं मुर्खों को ये नहीं पता हैं विज्ञान भी धर्म से ही निकाला हैं अगर यहां विज्ञान में भौतिक विज्ञान की बात हो रहा हैं तो धर्म ग्रंथों में पराभौतिक की बात करते हैं लेकिन समझने का प्रयास नहीं करते हैं। बस बीना पैरों शीरों वाली बात करते हैं । विज्ञान का निपटा अंधो को धर्म ग्रंथों विज्ञान नहीं दिखते आज बृहदारण्यक उपनिषद् में विज्ञान की बात करेंगे आप खुद निर्णय करें क्या ये सब विज्ञान की बात गलत हैं। एवं वै भूतानां पृथिवी रसः पृथिव्या आपो अपामोषधय ओषधीनां पुष्पाणि पुष्पाणां फलानि फलानां पुरुषः पुरुषस्य रेतः॥१॥ भाष्य: एषां वै भूतानां च भूतिप्राणिनां पृथिवी रसः प्रदानं यद तत्वादयो मनुष्य शरीरस्य मधुवत सारभूतं अथ तस्य पृथिव्या आपो रसः आपो वा रसः औषुधयः (सुख करं अन्नं) इत्यर्थः औषुधीनां रसःपुष्पं पुष्पाणां फलानि रसाणी तैः पुष्पाफलादिनां रसदैव पुरूषः तस्य पुरूषस्य रेतः वृर्द्धिभवति इत्यर्थः अनुवादः इन सब भूतप्राणियों में पृथ्वी रस प्रदान होता हैं अर्थात पृथ्वी तत्त्व ही प्रदान होता हैं इसलिए पृथ्

क्या वेद में दयनोसर हैं?

संदीप आर्य नाम एक दुष्ट समाजी वेद में दयनोसर बोल रहा हैं ये यथावत ग़लत है इस मुर्ख ये तक पता नहीं मंत्र जो दिया गया हैं वो भगवान शिव केलिए समर्पित किया गया हैं नीचे इसका खण्डन किया गया हैं ये वृक्षेषु शष्पिञ्जर निलग्रीवा विलोहिताः तेषां ँ सहस्र योजने ऽव धन्वानि तन्मसि यजुर्वेद १६:५८ ये वृक्षेषु आश्रितः अतः वट अश्वतादि विलक्षणः भाव अधिगतम वृक्षं इति तेषु आश्रितः शष्पिञ्जर शष्पं बालतृणं तद् पिञ्जर च हरितवर्णाः च विगतं काश्चन् निलग्रीवा निलं च यद् ग्रिवा यं तान् रुदान् इति भावः तेषु केचन विशेषं लोहितः अतः तेषु काश्चन् रक्तवर्णाः यद्वा विगतं रुधिरं येषां ते लोहितपदं मांसादिनामुपलक्षणम् विगतो लोहितादिधातवस्तेजोमयशरीराः इत्यर्थ तेषां इति उक्तं तेषां सहस्र योजने अतः सहस्रयो जनरहित मार्गे वयमवतन्मसि अवतन्मः अवतारयाम तं धन्वानि धनूंपि दूरं क्षिपामि इत्यार्थः अत्र मन्त्रभिः दुरं कर्तुम इति कर्मणाद्भवः हिन्दी : अश्वतादि विलक्षणों से उत्पन्न होने वाले वृक्षों को आश्रय लेने वाले बाल तृणों के सामन एव हरित रंग वाले और कुछ जो नील ग्रीव वाले एवं मांस और शोणि रहित रुद्रों (भूत गण) जो होतें हैं एवं जो ते

क्या मनुस्मृति का ४/१२३/१२४

न तो ये श्लोक प्रक्षिप्त हैं न तो गलत है आर्य समाजी इन्हें समझने के बुद्धि नहीं होता है यहां कर्मणा विशेष भाव को अभिव्यक्त किया गया हैं सीधे बात ज्ञान संबंधित मंत्र से हवन नहीं होता हैं पितृसुक्त वा उनके संबंधित मंत्रों से देव हवन वा उपासना नहीं होता हैं । सामध्वनावृग्यजुषी नाधीयीत कदा चन । वेदस्याधीत्य वाप्यन्तं आरण्यकं अधीत्य च ४/१२३ सामवेद के शैली में कभी यजुर्वेद ऋग्वेद नहीं पढ़ना चाहिए क्यों कि यजुर्वेद गद्यात्मक हैं ऋग्वेद पद्यात्मक हैं इसलिए इनमें स्वर रहित हैं ।इसलिए स्वर लगायें बिना साम शैली उत्पन्न नहीं होता हैं आरण्यक उपनिषद पढ़कर हवन न करें इनमें ज्ञान बोधन होने से इनमें कर्म रहित हैं इसलिए इनसे अधययन से हवन नहीं होता हैं । ऋग्वेदो देवदैवत्यो यजुर्वेदस्तु मानुषः । सामवेदः स्मृतः पित्र्यस्तस्मात्तस्याशुचिर्ध्वनिः ४/१२४ ऋग्वेद देवता संबंधित होता हैं यजुर्वेद मनुष्य संबंधित हैं सामवेद पितृसंबधित हैं इसलिए इनका ध्वनि शोक का व्यक्त करता हैं अतः इनका ध्वनि खेद को प्रकट करते हैं। यहां पढ़ने की बात पढ़ने लिखने की नहीं हो रहा हैं अपितु कर्म बोधक में लिया गया हैं इसलिए यहां केवल उस उ