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Showing posts from 2022

वेदों में गणपति भगवान भाग-०१

वेदों में गणेश भगवान  हमारे हिन्दू धर्म का रोचक तथ्य है कि पांच देवताओं को परब्रह्म परमात्मा मानें जाते हैं। इनमें से शिव , गणपति, देवी, सुर्य और विष्णु मुख्य हैं। कोई भी पुजा वा देवकार्य में अग्र पुजा के अधिकारी  कौन हैं उस देव का वैदिक महत्व क्या हैं भगवान आदि शंकराचार्य पंचायतन पुजा पद्धति का प्ररम्भ किये थे। इसका चित्र समेत डाल दिया हुं  गणेश परब्रह्म का प्रयोग वेद में वृहस्पति का अर्थ में होते हैं बृहस्पति शब्द का उत्पत्ति इस प्रकार होता हैं। बृहत्या वाचः पतिः बृहस्पति होता हैं अब गणेश ही क्यों गणेश ज्ञान का भगवान् हैं अतः बृहत अर्थात महान वाच अर्थात मंत्र उसके पति रक्षक गणेश भगवान हैं । आचार्य सायण जी भी अपने भाष्य में ब्रह्मण का अर्थ मंत्र करते हैं इसलिए मंत्र का रक्षा करने वाले परब्रह्म परमात्मा ही महागणपति हैं। यहां वाच शब्द का अर्थ उच्यतेऽसौ अनया वा वच होता हैं अब मीमांसा दर्शन में कर्म को ही परब्रह्म मानते हैं यहां मीमांसा में एक ही ईश्वर है जिसके प्रति हवन होता हैं। यहां ये नहीं समझना चाहिए उस ईश्वर का ही हवन होता हैं । यहां कर्म में दो पुर्वोत्तर न्यास और प्रत्योत्तर न्यास

गीता भगवान कृष्ण के वचन नहीं है

कुछ शैव विरोधी भगवान शिव को नीचा दिखाने  केलिए भगवान् कृष्ण भगवान शिव का उपदेश किये हैं क्यों कि भगवान राम को भी शिव गीता का उपदेश देते हैं उसके चलते भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं  अनु गीता परं हि ब्रह्म कथितं योगयुक्तेन तन्मया।  इतिहासं तु वक्ष्यामि तस्मिन्नर्थे पुरातनम्॥१३॥ मेरे द्वारा सदाशिव के विषय मे बताया गया था और  परं हि ब्रह्म कथितं योगयुक्तेन तन्मया। इतिहासं तु वक्ष्यामि तस्मिन्नर्थे पुरातनम्॥१३॥ मेरे द्वारा परब्रह्म के विषय मे योग युक्त होकर बताया गया था  उस विषय में मैं तुम्हें एक पुरातन इतिहास बताऊँगा। यहां योग और युक्त समाहर ही योग युक्त है यहां सप्तमी तत्पुरुष समास है इसलिए यहां योग के अर्थ ऐश्र्वर्य आदि नहीं हो सकता हैं अगर भगवान् कृष्ण अपने पीछले जन्म में विद्या प्रप्ता हुआ उनके संस्कार नाश नहीं हो सकते हैं भगवद्गीता ११:४७ आत्मयोगत् यहां सप्तमी तत्पुरूष समसा है कोई वस्तु एक भाव या स्थिति के अंदर स्थित हो उसे सप्तमी में कहते हैं जैसे आत्मेषु योग: आत्म में युक्त होकर   यही अर्थ होता हैं क्यों कि यहां शतपथ ब्राह्मण में लिखा है रूद्रो वै प्राण  यहां भगवान कृष्ण को अ