आज कल कुछ आर्य समाजी लोग पुराण के प्रमाण से आदिशंकराचार्य जी के खण्डन करते हैं इनके कोई औकात नहीं है अद्वैत वेदांत के खण्डन करने केलिए इनके दयानंद जी ही परिछिन्न नास्तिक थे हम इनके प्रमाण से पहले आर्य समाजी और अद्वैत और अन्य हिन्दू मत बहुत से अन्तर है आर्य समाजी ब्राह्मण उपनिषद अरण्यक आदि को नहीं मानते पुराण को भी नहीं मानते इसके नीच परिछिन्न नास्तिक अग्निव्रत ब्राह्मण से झूठ बोलते हैं। इनके अग्निव्रत से पुछे जब तुम ब्राह्मण में विज्ञान मानते हैं तो तेरे चेले उसे क्यों अवैदिक कहते हैं अग्निव्रत ठिक से ब्राह्मण के व्याख्या नहीं कर सकता विज्ञान क्या सिखायेगा अब आते हैं प्रमाण पर न तो ये इसके सही भाष्य है इसके अर्थ गलत किया है वास्तव मायावद बौद्ध धर्म के एक परिछिन्न मत है महायान विरजयान और शुन्यवाद इसमें प्रकृति कोई कारण माना है वास्तव में शंकराचार्य जी ने ब्रह्म कोई मूल कारण माना है बौद्ध धर्म के लोग ब्रह्म को नहीं मानते थे इसको खण्डन करने हेतु शंकराचार्य जी अद्धैत मत अपना कर बौद्ध का खण्डन किया अद्वैत मत अपना कर लोगों को धार्मिक बनाया वेद उपनिषद में इनके प्रमाण है इसके समीक्षा बात