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क्या मुर्ति पूजा वेद विरुद्ध है

आज कल आर्य समाजी मुल्ले ईसाई मुर्ति पूजा वेद विरुद्ध बोलते हैं इनके एक श्लोक न तस्य प्रतिमा अस्ति ये आधा श्लोक हैं इसके सही अर्थ इस प्रकार हैं दयानंद जी संस्कृत कोई ज्ञान नहीं था ईसाई प्रभावित होकर विरोध किया था इन पर विश्वास न करें।
 न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महाद्यश:।
हिरण्यगर्भऽ इत्येष मा मा हिंन्सिदितेषा यस्मान्न जातऽ इतेषः।। यजुर्वेद ३२.३  स्वयम्भु ब्रह्म ऋषि:  मन्त्रदेवता हिरण्यगर्भ: (विष्णु , नारायण,) परमात्मा देवता 
भावार्थ:
न तस्य गायत्री द्विपदा तस्य पुरुषस्य ( महा नारायणस्य) किञ्चद्वस्तु प्रतिमा प्रतिमानमुपनां नास्ति यस्य नाम एव प्रसिद्धं महाद्यशः अस्य प्रमाणं वेदस्य हिरण्यगर्भ ऽइत्येष मा मा हिंन्सिदितेष यस्मिान्न जातऽइतेषः इत्यादयः श्रुतिषु प्रतिपादितः इति अस्य यर्जुवेदमन्त्रस्य  अर्थः भवति।
  न तस्य पुरुषस्य (महा नारायणस्य) प्रतिमा प्रतिमानं भूतं किञ्चिद्विद्यते - उवट भाष्य
न तस्य पुरुषस्य ( महानारायणस्य) किञ्चद्वस्तु प्रतिमा प्रतिमानमुपनां नास्ति - महीधर भाष्य
यस्य नाम एव प्रसिद्धम् महाद्यश तस्य नाम इति महानारयण उपनिषदे अपि प्रतिपादिताः 
हिंदी अनुवाद:
उस महा नारायण  पुरूष का कोई उपमा नहीं हैं।
अर्थात उसके बराबरी करने  वाला कोई नहीं हैं
उसका नाम महा यश देने वाला महाद्यश हैं ।
इसमें वेद ही प्रमाण हैं जैसे कि हिरण्यगर्भः मा मा हिंन्सिदितेषा यस्मान्न यस्मान्न जातऽ  इत्यादि श्रुतियो में  इसके महान् यश का वर्णन हैं।
 व्याकरणः
न तस्य प्रतिमा अस्ति। 
न: - नहीं
तस्य -  उसके
 अस्ति हैं ‌।
१) प्रतिमा विषय के अर्थ ( संज्ञा या सर्वनाम)
न तस्य प्रतिमा अस्ति।
उसके किताब नहीं है।
उसके कपडे नहीं है।
१) प्रतिमा = चित्र
संस्कृत उदाहरण;
१) तस्य पुस्तकं नास्ति।
२) तस्य वाहानं नास्ति।
३) तस्य वस्त्र नास्ति।
२) उपमा या रुपक के अर्थ में 
१)  कर्ण दान के प्रतिमा हैं ।
२) कृष्ण शान्ति के प्रतिमा हैं ।
३ सुर्य प्रकाश के प्रतिमा हैं।
क्या भगवान एक वस्तु हैं।?
प्रति उपसर्ग हैं।
प्रति + मा  प्रतिमा  ( उपमा या तुलना)
न तस्य प्रतिमा अस्ति। 
उसके कोई उपमा नहीं है।
क्या भगवान वस्तु का विषय है।? 
प्रमाण:
प्रतिमानं प्रतिबिम्बं प्रतिमा प्रतियातना ।
प्रतिच्छाय प्रतिकृतिर्चा पुंसि प्रतिनिधिः
उपमोपमानं स्यात् - अमरकोष -२/१०/३५/३
इस महानारयण के वर्णन महानारयण उपनिषद में इस प्रकार दिया हैं
नै॒न॑मू॒र्ध्व न ति॒र्यञ्चं॒ न मध्ये परि॑जग्रभत् ।
न तस्येऺशे॒ कश्च॒न तस्य नाम म॒हद्यशः॑
एन परमात्मान् न कोऽपि उर्ध्वाधोभावेन परिगच्छिन् बुद्धया परिगृह्णाति।तिर्यक् विस्तारपरिग्रहेणापि न जानाति। मध्यावकाशपरिमाणेनापि न बुध्यति । महत् यशः इति तस्य दिव्य नामधेयं भवति अतः न किञ्चिदपि   अन्य तस्य ईष्टे ॥
हिंदी: - उस परमात्मा उर्ध्वाधोभाव के बुद्धि से परे कोई नहीं जा सकता न इसके तिर्यक अवकाश  न  मध्य अवकाश को भी नहीं जान सकते हैं। इसके नाम महद्यश हैं अर्थात परम दिव्य महा यश देने वाले हैं इसलिए इनके सीमा के उपमा नहीं हैं अर्थात इसके समान या बरबर नहीं हैं इसको केवल अध्यात्म के चिंतन से या मनो  बुद्धि इन्द्रियों से परे जाकर समझना हैं ।
इसलिए यहां कोई मुर्ति पूजा विरोध नहीं हैं ।

Comments

  1. Bohot bariya Arya samaj aur mulle me koi antar nahi he

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    1. हिन्दू लोग थोक में मुस्लिम, ईसाई या नास्तिक बन रहे थे क्योंकि सनातन वैदिक धर्म में बहुत सी बुराईयां, पाखंड, टोने-टोटके और जातिवाद आदि जैसी फैल रही थी इन बुराईयों के कारण हिन्दूओं का भारी पैमाने पर धर्मान्तरण करवाया जा रहा था जिसे रोकने को कोई आगे नहीं आ रहा था तभी महाऋषि दयानंद जी ने आगे आ इस धर्मान्तरण को रोकने का साहस किया और पहले सनातन धर्म की बुराईयों को खत्म करवाने का प्रयास किया फिर आर्य समाज संस्था बना कर केवल वेदों के प्रचार के साथ साथ फैले पाखंड और कुरान बाइबिल को वेद विरुद्ध बता हिन्दूओं को धर्मांतरित होने से बचाया अन्यथा दुनियां में हिन्दू नाम के लोग ढूंढने पड़ते। आर्य समाज केवल वेद विद्या के प्रचार और प्रसार का ही काम करने के लिए एक संस्था के रूप में ही बनाया गया है न कि कोई अलग मत, सम्प्रदाय, कौम या मजहब नहीं है।

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  2. मुझे लगता है कि आप ज्यादा ही गुस्से मे पोस्ट लिख रहे है। मै आर्यसमाजियो के बीच मे रहता हूँ। सभी ईश्वर प्राणिधान करते है। यज्ञ करते है। परोपकार मे सबसे आगे रहते है। दूसरी बात इसाई खंडन मुसलमान खंडन मे जितना काम ये आर्यसमाजी कर रहे है उसका आघधा भी यदि हम पौराणिक लोग करते तो अब तक मुसलमान घुटनो के बल नजर आते। मेरे घर मे न मनुस्मृति थी, न रामायण न महाभारत लेकिन आर्यसमाजियो के द्वारा ही 3-3 भाष्य मनुस्मृति के है। रामायण महाभारत पीडीएफ फॉर्मेट मे है। यदि ये न होते तो मुझे तो ये ही पता न चलता कि सूतपुत्र दरअसल ब्राह्मण कन्या और क्षत्रिय पुरूष द्वारा उत्पन्न होने वाली संतान को कहते है। इसलिये मै तो कहना चाहूँगा कि पौराणिक और आर्यसमाजी सभी आपसी मतभेदों को दूर करे। इसके शास्त्रार्थ करे जिसका मत श्रेष्ठ हो वो ग्रहण कर ले जो हारे वो अपनी पुस्तके से उन बातो को हटा दे। इससे हम एक हो पायेंगे और इसाईयो और मुसलमानो को भी हरा सकेंगे।

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    1. ओह ये बात सही कहा आपने मुस्लिम घुटने टेक देते है,,,क्या धर्म है आप लोगो का क्या बताया आपने अपने आपको आर्य,,आर्य का यही धर्म है कि दूसरे धर्म के लोगो को जबरन घुटने टिकवाओ,कितना महान धर्म है आपका, आपका मनुस्मृति ठीक है बाकी सब गालत, जैन, बोध, ईसाई, सिख, मुस्लिम, बस एक सनातन ओर आर्य अच्छा है क्यों जैसा आपने बताया कि मनु जी ने कहा ही घुटने टिकवा दो,,क्या धर्म ह😀😀😀😂🙏🙏🙏

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    2. घुटने टिकवाने का मतलब है कि मुल्ले मौलवी और पादरी आदी जो हिन्दूओं में झूठ फैला कर उन्हें धर्मांतरित कर रहे हो, अगर हिन्दू आपस में न बंटते तो यह लोग ऐसा न कर पाते।


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    3. शब्बीर भाई अनपढ़ जाहिल अरबी बाबा ने जो पूरी जिंदगी किया उसके चेले वाही भाषा समझता हैं. क्या करें मजबूरी है.. मुझे सच में दुःख होता है के इन अनपढ़ बाबा के चेलो को समझाने के चक्कर मानव को देवतुल्य बनाने वाले संतान धर्म के अनुयायियों को उनके लेवल पे नीचे गिरना पड़ता है... वैसे आप भी कभी ठन्डे दिमाग से सोचें के इश्वर को प्राप्त करने के उछ मार्ग को छोड़ कर २ हूरी ३६ गुलफाम असीमित दारु के शैतानी अड़े जन्नत के लालच उस रस्ते पे भटका देने वाला बाबा धार्मिक इंसान तो नहीं हो सकता...धर्म का मढ़ अल्लाह को पाने का मार्ग है. अल्लाह को छोड़ जन्नत के रस्ते भटक जाना धार्मिक नाहिया धर्म कर्म है.

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  3. Yaar murti pooja wala mantra toh de dete 🤣🤣🤣. Aise kaise maam le ki vedo mei moorti pooja hai ??🤣🤣🤣

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  4. इतनी घृणा में ये लिख दिये हो लेकिन अपना तर्क सही साबित करने के लिए वो वेद मंत्र तो दे देते जिसमे लिखा हो, *निराकार* की मूर्ति बनाओ और उपासना करो।

    I'm waiting for that ved mantra, till then
    ओ३म् नमस्ते😄🚩

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  5. चाहे कहीं भी चलें जाओ अगर प्रेम नहीं है तो परमेस्वर नहीं है। जहाँ प्रेम है वहीं परमेस्वर है।

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  6. Bewakuf banate ho Bhagwa Aatankwadio jo nira'kaar hai uska aakar bhi hai?? Hahaha jake pehle ye pata karo ki Tumhra niyog baap kon tha aur hathi ka sar insna ki gardan pe kaise fitt hota hai

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  7. हम हिंदू जनों को अपने धर्म के बारे में विस्तार से जानने के लिए अपनी धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना अति आवश्यक है

    कुछ लोग आपस में व्यर्थ में एक दूसरे के लिए गलत शब्द का प्रयोग कर रहे हैं

    यदि वे लोग भगवत गीता वेद उपनिषद इत्यादि पढ़ेंगे तो कभी भी एक दूसरे को अभद्र भाषा नहीं बोलेंगे और अपने सनातन धर्म को अच्छी तरह से जानेंगे

    और मूर्ति पूजा की बात है
    ..तो उसके लिए मंदिर है मंदिर में मूर्ति है मूर्ति की विधिवत पूजा करने के लिए पुजारी हैं

    भक्त लोगों को चाहिए कि धार्मिक पुस्तकों को पढ़ें

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