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Showing posts from October, 2019

संख्या दर्शन १:१

संख्या दर्शन १:१ अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरयन्तपुरूषार्थः पदार्थ: अथ त्रिविध दुःखात्यन्त  निवृत्ति अन्त एवं पुरूषार्थः इति चेन १)सूत्रार्थ :इस लोक में तीन प्रकार के दुःख आध्यामिक ,अधिभौतिक ,एवं अधिदैविक नाम से प्रसिद्ध हैं। २) इन दुःखो कि अत्यन्त निवृत्ति अर्थात सदा केलिए तिरोभाव ही अत्यन्त पुरूषार्थ अर्थात मोक्ष हैं । ३)इस संसार में धर्म ,अर्थ, काम एवं मोक्ष नाम से चार पुरूषार्थ प्रसिद्ध हैं इनमें से मोक्ष को ही श्रेष्ठतम कहा हैं। और इसको ही परम पुरुषार्थ कहा हैं। १)भा.प्र  याज्ञवल्क्य स्मृति (३/१०६) की  अपरार्कटीका(शब्द निर्माण) में देवल के वचन त्रिविधं दुःखम् से भी दु:ख की त्रिविधता का समर्थन होता हैं। २)अथ शब्द इति : सूत्र के 'अथ' शब्द का उच्चारण मंगल  केलिए होता हैं। ३) उच्चारण मात्रा से ही वह अथ शब्द कोई मंगलचारण कहा हैं ये बात संख्या के पंचम अध्याय के 'मंगलाचरण शिष्टाचारत्' (५;१) नामक सूत्र में कहा हैं । अब सुत्र के व्याख्य सुत्र से करेंगे ४) अथ शब्द का अर्थ अधिकार आरम्भ हैं । ५) 'अथ ' शब्द के प्रश्न आनन्तर्य आदि अन्य अर्थ भी हैं ‌। ६) किन्