सायन भाष्य ऋग्वेद ७:५५:३-४ स्तेनं राय सरमेय तस्करं वा पुनः सर स्तोतृनिद्रस्य राससि किमस्मान् दुच्छनायसे नि षु स्वप इस मंत्र में इन्द्र देवता के स्वर्ग में रहने वाले कुत्ते सारमेय कि बात हो रही है हे वाचस्पति इन्द्र आपके इस गतिमान कुत्ते आपके स्तोता के पीछे न लगते हुवे हमारे बीचों में स्थित चोरों के निकट गमन करते हुवे उसे धराशय करें हमारे यज्ञ में क्यों विघ्न डालते हैं अर्थात हमारे यज्ञ के वस्तु को चोरी करने वाले चोरों को धराशय करने वाले आप निद्रा लीन हो जायें । अर्थात आपको को भी इन्द्र से ऐश्र्वर्य आदि प्रप्ता हों त्वं सुकरस्य दर्दहि तव दर्दतुं सुकरः स्तोतनिन्द्रियस्य रायसिंह किमस्मान दुच्छुनायसे नि षु स्वप आप सुकर जैसे जानवरों जिससे हमारे हानि हों उसे धराशय करें आपको इस सुकर जैसे जनावर जो आपको को भी धराशय करते हैं उसके उपर अक्रमण कारी हो इन्द्र देवता के वचन के अनुसार चलने वाले आप हमें समस्त प्राणियों यो से रक्षा करें हमारे यज्ञ विघ्न क्यों डालते हो हमारे इस यज्ञ के हेतु आपको पीडा देने वाले सुकर निद्रा लीन हो जायें इस दोनों मंत्र में देवता कार्य में विघ्न डालने वाले शक्ति वाल