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Showing posts from November, 2021

नासदीय सुक्तं एक विश्लेषण

नाससदीय सुक्तं -ऋग्वेद मंडल १० सूक्त १२९ *१.नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।* *किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम् ॥ १॥* आदि में ना ही किसी (सत्)आस्तित्व था और ना ही (असत्) अनस्तित्व, मतलब इस जगत् की शुरुआत एक परिपुर्ण अदृश्य निराकार निर्गुण र्निविकलप ब्रह्म से हुई। तब न हवा थी, ना आसमान था और समय भी नहीं था परब्रह्म के परे कुछ था, *२. न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः ।* *आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास ॥२॥* चारों ओर समुन्द्र की भांति गंभीर और गहन बस अंधकार के आलावा कुछ नहीं था। उस समय न ही मृत्यु थी और न ही अमरता, मतलब न ही पृथ्वी पर कोई जीवन था और न ही स्वर्ग में रहने वाले अमर लोग थे, उस समय दिन और रात भी नहीं थे। उस समय बस उसके शक्ति से व्याप्त शब्द आकाश था अर्थात शब्द रुप के ॐ कार स्वरुप अक्षर ब्रह्म उसके बल था मतलब जिसका आदि या आरंभ न हो और जो सदा से एक तार (string) रुप में सदा परब्रह्म में व्यक्त हो *३. तम आसीत्तमसा गूहळमग्रे प्रकेतं सलिलं सर्वाऽइदम् ।* *तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्