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Showing posts from December, 2019

क्या हैं कुब्जा प्रंसग का वास्तविक अर्थ

कुछ लोग जैसे आर्य समाजी वामपंथी एवं अन्य धर्म अनुयायि लोग कुब्जा के प्रसंग गलत तरीके से प्रकटिकरण करते हैं    बोधयामास तां कृष्णो न दासीस्वपि निद्रिताः । तामुवाच जगन्नाथो जगन्नाथप्रियां सतीम् ।। 55 ।।  भाष्य : अविद्या ग्रसितं प्रणिना देहमश्रितं आत्म तत्त्वस्य शोधनं यद भवति तदा ईश्वरस्य अनुग्रहदैव तस्य निवृत्तिः भवति इति दुःखस्य उपसंहारं केवलं धर्म अर्थ काम मोक्ष इत्यादयः पुरूषार्थेण सिद्ध्यति  अथ प्रकारेण आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी इति चत्वरि भक्तीभ्यः मनुष्य ईश्वरम् भजन्ते तद फल स्वरूपेण यदा भक्तः ज्ञानी च भवति तदा तान्  मोह माया निद्रा अपि बोधयितुं देवः स्वयं यतति इति अर्थः उचितः अयं प्रसंगेपि कृष्णः अयं महत् कार्यं कुरतवान् इति भावः तद कुभ्जाम् उदिश्य एवं उवाच प्रिय भक्ते ! अविद्या ग्रसित प्राणि अपने देह में अश्रीत किया गया उस आत्म तत्व के शोधन केलिए भगवान को चार प्रकार भजते हैं अर्थात चार प्रकार के भक्ति जैसे अर्थार्थी आर्त जिज्ञासु एवं ज्ञानी जब भक्त ज्ञानी भक्ति करते हैं तो भगवान स्वयं ज्ञान प्रकाशित करने के प्रयत्न करते हैं उस समय ऐसा करने केलिए भगवान समस्त दसीयों को न जागकर