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गीता भगवान कृष्ण के वचन नहीं है

कुछ शैव विरोधी भगवान शिव को नीचा दिखाने  केलिए भगवान् कृष्ण भगवान शिव का उपदेश किये हैं क्यों कि भगवान राम को भी शिव गीता का उपदेश देते हैं उसके चलते भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं 
अनु गीता

परं हि ब्रह्म कथितं योगयुक्तेन तन्मया। 
इतिहासं तु वक्ष्यामि तस्मिन्नर्थे पुरातनम्॥१३॥
मेरे द्वारा सदाशिव के विषय मे बताया गया था और 

परं हि ब्रह्म कथितं योगयुक्तेन तन्मया।
इतिहासं तु वक्ष्यामि तस्मिन्नर्थे पुरातनम्॥१३॥
मेरे द्वारा परब्रह्म के विषय मे योग युक्त होकर बताया गया था  उस विषय में मैं तुम्हें एक पुरातन इतिहास बताऊँगा।
यहां योग और युक्त समाहर ही योग युक्त है यहां सप्तमी तत्पुरुष समास है इसलिए यहां योग के अर्थ ऐश्र्वर्य आदि नहीं हो सकता हैं अगर भगवान् कृष्ण अपने पीछले जन्म में विद्या प्रप्ता हुआ उनके संस्कार नाश नहीं हो सकते हैं
भगवद्गीता ११:४७
आत्मयोगत् यहां सप्तमी तत्पुरूष समसा है कोई वस्तु एक भाव या स्थिति के अंदर स्थित हो उसे सप्तमी में कहते हैं जैसे आत्मेषु योग: आत्म में युक्त होकर   यही अर्थ होता हैं क्यों कि यहां शतपथ ब्राह्मण में लिखा है रूद्रो वै प्राण  यहां भगवान कृष्ण को अपने का आत्म ज्ञान हो चुके थे आत्म का गुण ज्ञान यही प्रज्ञा मन में घटित होता हैं
नारायणोऽपि भगवान् देवकीतनयो हरिः ⁠। अर्जुनाय स्वयं साक्षात्‌ दत्तवानिदमुत्तमम् कुर्म पुराण में भी कहा भगवान हरि कृष्ण अवतार में यही अलौकिक कर्म का ज्ञान अर्जुन को दिया हैं।
कृष्णद्वैपायनः साक्षाद् विष्णुरेव सनातनः ⁠। को ह्यन्यस्तत्त्वतो रुद्रं वेत्ति तं परमेश्वरम् ⁠।⁠।⁠ ६५ ⁠।⁠।कुर्म पुराण
यहां लिख है भगवान विष्णु के अलावा कोई अन्य शिव भगवान का यथा रूप वर्णन नहीं कर सकते हैं। शिव सहस्त्रनाम नाम उपदेश करते हुए भगवान कृष्ण शिव जी कोई परब्रह्म मानते हैं महाभारत अनुशासन पर्व खोल कर देखिए इन सब के अलग लेख में लिखते हैं
यहां पता चल रहा हैं ईश्वर गीता का अनुकरण ही भगवद्गीता हैं। इसलिए भगवद्गीता कृष्ण भगवान के वचन नहीं बल्कि भगवान शिव का हैं। धन्यवाद हर हर महादेव

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