संदीप आर्य नाम एक दुष्ट समाजी वेद में दयनोसर बोल रहा हैं ये यथावत ग़लत है इस मुर्ख ये तक पता नहीं मंत्र जो दिया गया हैं वो भगवान शिव केलिए समर्पित किया गया हैं नीचे इसका खण्डन किया गया हैं
ये वृक्षेषु शष्पिञ्जर निलग्रीवा विलोहिताः तेषां ँ सहस्र योजने ऽव धन्वानि तन्मसि यजुर्वेद १६:५८ ये वृक्षेषु आश्रितः अतः वट अश्वतादि विलक्षणः भाव अधिगतम वृक्षं इति तेषु आश्रितः शष्पिञ्जर शष्पं बालतृणं तद् पिञ्जर च हरितवर्णाः च विगतं काश्चन् निलग्रीवा निलं च यद् ग्रिवा यं तान् रुदान् इति भावः तेषु केचन विशेषं लोहितः अतः तेषु काश्चन् रक्तवर्णाः यद्वा विगतं रुधिरं येषां ते लोहितपदं मांसादिनामुपलक्षणम् विगतो लोहितादिधातवस्तेजोमयशरीराः इत्यर्थ तेषां इति उक्तं तेषां सहस्र योजने अतः सहस्रयो जनरहित मार्गे वयमवतन्मसि अवतन्मः अवतारयाम तं धन्वानि धनूंपि दूरं क्षिपामि इत्यार्थः अत्र मन्त्रभिः दुरं कर्तुम इति कर्मणाद्भवः हिन्दी : अश्वतादि विलक्षणों से उत्पन्न होने वाले वृक्षों को आश्रय लेने वाले बाल तृणों के सामन एव हरित रंग वाले और कुछ जो नील ग्रीव वाले एवं मांस और शोणि रहित रुद्रों (भूत गण) जो होतें हैं एवं जो तेजो मय शरीर से युक्त होते हैं उसके धनुष आपके इस मंत्र से हमसे हजारों दुर जनरहित मार्ग में स्थित हो जावें (अर्थात हमें इनसे कष्ट न हो)
कुछ लोग जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी पर अक्षेप करते हैं उन्होंने नारि को नरक का द्वार कहा हैं वास्तव में नारी को उन्होंने नारी को नरक के द्वार नहीं कहते परन्तु यहां इसके अर्थ नारी नहीं माया करके होता हैं इनके प्रमाण शास्त्रों में भी बताया गया हैं अब विश्लेषण निचे दिया हैं इसके प्रकरण कर्म संन्यास में रत मनुष्यों के लिए यहां नारी के अर्थ स्त्री नहीं होता हैं उचित रूप में ये माया के लिए प्रयुक्त होता हैं नीचे प्रमाण के साथ बताया गया हैं संसार ह्रुत्कस्तु निजात्म बोध : | को मोक्ष हेतु: प्रथित: स एव || द्वारं किमेक नरकस्य नारी | का सर्वदा प्राणभृतामहींसा ।।3।। मणि रत्न माला शिष्य - हमें संसार से परे कौन ले जाता है? गुरु - स्वयं की प्राप्ति एक ही जो हमें संसार से परे ले जाती है और व्यक्ति को तब संसार से अलग हो जाता है। यानी आत्म बोध। शिष्य - मोक्ष का मूल कारण क्या है? गुरु- प्रसिद्ध आत्म बोध या आत्म अहसास है। शिष्य - नरक का द्वार क्या है? गुरु - महिला नरक का द्वार है। शिष्य - मोक्ष के साथ हमें क्या सुविधाएं हैं? गुरु - अहिंसा (अहिंसा)। अपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें
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