शिव तत्व की व्याख्या शिव पुराण का मुख्य भाग -१
एक बार ब्राह्मा जी नारद जी से व्याख्या करते हुए भगवान सदाशिव की परमद्भूत अलौकिक कथा का वर्णन इस प्रकार उदृत किया है।
कि शिव तत्व बहुत ही परमद्भूत एवं उत्कृष्ट हैं हम इस वचन से नासदीय सुक्त तथा मनुस्मृति याद आया जैसे उसमें ये कहा हैं पहले प्रलय कालिन समय न तो सत् था न असत् उस सदाशिव अपने महिमा से द्वितीय देवता कि उत्पन्न की कैसे हुआ ये सब अचानक इसके कथन बड़े रोचक हैं गोपथ के पहले खण्डिक में दिया है पहले परब्रह्म परमात्मा सदाशिव अकले थे उसने अपने समान एक और स्वरूप कि इच्छा की इसे वेद तथा आगम में वैश्णवी कहते हैं ।
वैश्णव शक्ति का वर्णन इस प्रकार करते हैं।
इसमें प्रायः तीन भेद है श् ण् व् और वै नामक एक निपात का प्रयोग किया हैं शकार का लक्ष्य भेद त्रिशक्ति युक्त पंचप्राणात्मक पंच देवताम्क दशधा शक्ति से त्रिबीज न्याय से भगवान सदाशिव पंचदेवों को तथा पंचप्राण का उत्पादन करते हैं इसलिए ब्रह्म सुत्र के जन्मद्यस्य यता और शास्त्रो नित्यत्वत् इससे सदाशिव ही परब्रह्म परमात्मा सिद्ध होते हैं ।
क्यों कि आगम में स्पष्ट कहा हैं काल , प्रदान पुरुष ये त्रय बीचात्मक से सृष्टि बना हैं। इसका अलग रूपों की वर्णन हमारे पुराण आदि शास्त्रों में किया गया हैं इसके इस प्रकार भेद हैं
१) पुरूष भेद
२) काल भेद
३) प्रदान भेद
४) रूप भेद
इनका रूप भेद को समझने हेतु हमारे कुर्म पुराण में रूप और रस उत्पत्ति विज्ञान का लेख पढ़ सकते हैं । हमारे अगले लेख में इन सबके उपर प्रतिपादन करते हैं हर हर महादेव धन्यवाद 🙏
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