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नास्तिक का पर्दाफाश १

नास्तिक का पर्दाफाश
क्या अर्थवेद में रूद्र देवता का मूत्र पीना लिखा है।
पहले बात जब अथर्ववेद में आयुर्वेद का वर्णन करते हैं तो कौनसा आयुर्वेद विश्वविद्यालय में पढ़ें हो हकिम वैद्य तुमने संस्कृत पढ़ें बिना ये कैसा समझ लिया उसका हिन्दी अर्थ ऐसा ही होगा। अगर हिम्मत है तो बोलो विज्ञान में अंधकार में से आपस् तत्व प्री मेटर कहां से निकला तेरे विज्ञानी लोग वहां बैठ कर देख रहे थे क्या ?
रुद्रस्य मूत्रमस्यमृतस्य नाभिः । विषाणका नाम वा असि पितॄणां मूलादुत्थिता वातीकृतनाशनी ॥३॥
रूद्रस्य इति संदर्भे पष्ठी शेषे वा सन्दर्भे इदं इति पष्ठी कारकस्य प्रयोगत्मूत्रशब्दस्य प्रयोगः विधते 
मूत्र वा मूत्र--अच्  क्षरितजले अमरः ।क्षर रहितं तद जलं क्षरितजलं इति आयुर्वेदस्य तत्त्वानि रसाभूतानि वा भवति। यथा सर्वाणि वा रसानि सोमत्मकानि या भवति तस्य नाभिः इति पदार्थेन व्याख्यानं विद्यते अयमेव न्याये रसो वै सः इति मत्वे आपस्सन्धाने पृथ्व्यां औषधयादयः भूता तनि सर्वाणि रसो मयं रसापि सदाशिवस्य शक्ति रूपाद्वैव उत्पन्नः भवति। यथा रूद्रो वै प्राणः , वायु वै प्राणः इत्यादि शृति वचनेषु च आकाशस्शब्दस्पर्शः सन्धाने वायुः महा भूतस्य उत्पत्तिः भवति तदैव त्रिणी भूतानां मध्ये इदमेव शक्ति स्पंदन यूक्तं च भूतमेति यथा अग्निः गुणः उष्ण स्पर्शं भवति, जलं शीत स्पर्शं भवति च पृथ्व्या रस रूप गन्ध शब्दः स्पर्शः भवति अत्रापि स्पर्शं विना त्रिभूतानां उत्पत्तिः एव न भवति तेनानेव अन्नादयः उत्पन्नः भवति तदैव कारणात् तस्य क्षरित जलं इति अर्थः ब्रूते। तस्य रसात्मकं भावः एव नाभिः इति अर्थः प्रतिपादिताः तस्य औषधीनां प्रयोगेण पितॄणां मध्ये (मनुष्याणां) तस्य आयुर्वेदस्य योग प्रयोगेण गतः वात रोगस्यापि मूल कारणेन नाशितं भवति तस्मादैव सर्वाणि औषधानि रसानि अमृतमयं तस्य प्रयोगदैव रोगस्य उपचारः भवति इति तस्य एव विषाणक वा नाम इति निपातः प्रयोगेण तस्य नामधेयं एव विषाणक इति न्यायः प्रतिपादिताः।

हिन्दी अनुवादः रुद्र का आपस् तत्व क्षरित जल   ही अमृतरूप रस है जैसे वायुभुत सब का शक्ति भूत है सब भूतों में वायु का स्पर्श गुण होते हैं जैसे अग्नि में उष्ण स्पर्श जल में शीत स्पर्श पृथ्वी में शब्द रूप गन्ध स्पर्श इससे ही औषधि  युक्त अन्न उत्पन्न होते हैं  एवं यह विषाणका नामक ओषधि है। इनके पितृ तथा मनुष्यों के मध्ये में आयुर्वेद का विशेष योगिक प्रयोग से आनेवंशिक 'वात रोग' भी अपने मूल कारण सहित नष्ट हो जाते हैं ॥३॥
ये इसका अर्थ है प्रमाण
१) क्षरितजले अमरः
 २) रूद्र वै प्राणः शतपथ ।
३) वातो वै प्राणः
४) विषाणका नाम वा पासु से निपात का प्रयोग हुआ है 
५) अन्य विषयों को तैतरीय उपनिषद में दिया है
इसके बारे रस उत्पत्ति में दिया हुं पढ़िए उसे भी यही इसका सही अनुवाद है।

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धन्यवाद हर महादेव 🙏




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