Skip to main content

देवों ने खुद किये था मुर्ति पूजा

ये वेद मंत्र में पुराणों के अन्तर्गत दक्ष प्रजापति के यज्ञ कि बात चल रहा हैं यहां विष्णु भगवान के अनुपस्थित में प्रजापति दक्ष ने भगवान विष्णु के प्रतिमा बनाकर पुजन किये थे ।
यहां यज्ञ के विधी हैं कि पीठ में यज्ञ षुरूष को अधिष्ठाता बनाते हैं यहां विष्णु भगवान कोई ही यज्ञ पुरुष बना गया हैं विष्णु सो वा यज्ञपुरूष ये बात शतपथ का हैं। इसलिए इस मंत्र में भगवान विष्णु के बारें में लिखा हैं। उसने खुद अपने मुर्ति को असजृत (अर्थात उसने ही बनया) उसे यज्ञ हेतु यज्ञ में हविस देने हेतु किया था । ये स्पष्ट रूप से इन मंत्रों में दिया हैं।
कासीत् प्रमा प्रतिमा किं निदानमाज्यं किमासीत्परिधिः क आसीत।
छन्दः किमासीत्प्रौगं किमूक्थं यद्येवा देवमयजन्त विश्वे।। ऋग्वेद १०/१३०/३(प्रतिमा देवता)

उस समय के देव कृत यज्ञ में
👉 सबको यथार्थ ज्ञान बुद्धि देने वाला प्रतिमा रूपी भगवान कौन था?
👉 उस समय के जगत सृजन के यज्ञ के कारण कौन था और क्या था।?
👉उस समय के यज्ञ के परिधि कौन था।?
👉उस समय के जगत का पृष्ठावरण करने वाला कौन था।?
👉 उस समय के यज्ञ के वस्तु क्या था।?
👉उस समय के यज्ञ के छन्द: कोनसा था।?
👉उस समय के यज्ञ में स्तुति करने योग्य कौन था।?
उतर: जिस भगवान कि प्रतिमा को इन्द्र आदि पुजेते वहि भगवान नारायण इस जगत में स्थित हैं वहीं घृतवत् स्तुति करने योग्य हैं उसके ही प्रतिमा को देवता लोग पूजेते हैं।?
यज्ञो वै विष्णुः  इति श्रुतेः यज्ञः ईश्वरः तदर्थं यत् क्रियते तत् यज्ञार्थं कर्म ।(तैतरीय संहिता 1.7ं.4) 30 भगवान विष्णु ही यज्ञ पुरुष हैं ।
उस ईश्वर केलिए इसके संदर्भ में जो यज्ञार्थ में उपयुक्त होता हैं   उसको यज्ञकर्म कहते हैं
स देवेभ्यो आत्मानं प्रदाय ।अथैनमात्मनः प्रतिमामसृजत यद्यज्ञं ।।
तस्मादाहुः प्रजापतिर्यज्ञऽ इत्यत्मानो होतं प्रतिमामसृजत।। शतपथ ब्राह्मण ११/१/८/३
स वो (यज्ञ पुरुष भगवान विष्णु) देवुभ्यो (देवों के लिए) आत्मानं ( अपने आत्मा) प्रदाय (  देकर) अथ ( उस समय में) ऐन (उन्होंने)   आत्मात्मनः ( अपने अर्थात स्व शरीर के) प्रतिमाम् ( मुर्ति को) असृजत ( बनाया) तस्मात् (इसलिए) आहुः ( कहते हैं ) प्रजापतिर्यज्ञ (प्रजापति यज्ञ हैं  ) इतित्यमनो होतं ( क्यों कि  यज्ञा करने हेतु और यज्ञ में हविस देने हेतु अपना प्रतिमा (मूर्ति) असृजत (बनाया)

भावार्थ वो यज्ञ पुरूष भगवान विष्णु ने यज्ञ करने हेतु और हविस् देने हेतु देवों को  अपने आत्मा देकर अर्थात रयि (प्रकृति) से प्राणं (प्राण को संमिलन करके स्व शरीर के समान के अपने प्रतिमा बनाया  ।            इससे यही  पता चलता हैं कि देवता भी मुर्ति पुजा कियें थे‌

Comments

Popular posts from this blog

आदि शंकराचार्य नारी नरक का द्वार किस संदर्भ में कहा हैं?

कुछ लोग जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी पर अक्षेप करते हैं उन्होंने नारि को नरक का द्वार कहा हैं वास्तव में नारी को उन्होंने नारी को नरक के द्वार नहीं कहते परन्तु यहां इसके अर्...

महीधर और उवट सही भाष्य के विष्लेषन

यजुर्वेद २३/१९ महीधर और उवट कभी वेद के  ग़लत प्रचार नहीं कीये थे बिना  संस्कृत के ज्ञान के बिना अर्थ करना असंभव है आर्य समाजी एवं विधर्मी बिना संस्कृत ज्ञान गलत प्रचार इनके उद्देश्य मूर्ति पुजा खण्डन और हिन्दू धर्म को तोडना हैं इनके बात पर ध्यान न दें। देखिए सही भाष्य क्या हैं गणानां त्वा गणपतिं ँ हवामहे प्रियानां त्वा प्रियापतिं ँ हवामहे निधिनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम अहमाजानि गर्भधाम त्वाजासि गर्भधम् यजुर्वेदः 23/19 भाष्यः अश्व अग्निर्वा अश्वः (शत°ब्रा° ३:६:२५) शक्ति अभिमानी गतं जातवेदस ( इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यंवहतु परजानन ऋग्वेद १०/२६) परब्रह्मण तन्स्त्रीनां मध्ये अश्वो यत् ईश्वरो वा अश्वा( शत°ब्रा°२३:३:३:५) सः एवं प्रजापति रुपेण प्रजापतिः हवामहे प्रजा पालकः वै देवम् जातवेदसो अग्ने तान सर्वे पितृभ्यां मध्ये प्रथम यज्ञकार्यार्थम् गणनां गणनायकम् स गणपतिं सर्वे  देवेभ्यो मध्ये  आह्वायामि इति श्रुतेः। प्रियपतिम्  सः गणपतिं निधिनां (गणनां प्रियाणां निधिनामतिं का°श्रौ° २०:६:१४) सर्वाः पत्न्यः पान्नेजानहस्ता एव प्राणशोधनात् तद जातवेदो प्रतिबिम्बं...

धर्म की परिभाषा

हम सब के मन में एक विचार उत्पन्न होता हैं धर्म क्या हैं इनके लक्षण या परिभाषा क्या हैं। इस संसार में धर्म का समादेश करने केलिए होता हैं लक्ष्य एवं लक्षण सिद्ध होता हैं लक्ष...