वैशेषिक ग्रंथ के अनुसार पदार्थ क्या हैं?
जो जानने केलिए योग्य या उपयोग करने में योग्य अर्थात भौतिक विश्लेषण का परम प्रादुर्भाव को पदार्थ कहा हैं और उपाधि द्वारा इसका प्रत्यक्षात सिद्ध होता है उदाहरण केलिए जिस प्रकार विद्युत को बल्ब फंखा आदि उपयुक्त चीजो से उसके पदार्थ का प्रादुर्भाव होता हैं अंग्रेजी में इसका निकटतम अर्थ ultimate intellectual analysis करके होता हैं पदार्थों को मूलतः पद से अर्थात ( categories) से अभिप्रेत करते हैं इसे समझने हेतु अपने अभिज्ञान (अर्थात सही बुद्धि)उपयोग द्वारा ही संभव होता है इनके कार्य पूरता भी इसी से सिद्ध होता है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार पदार्थ एक शब्द के अर्थ को संदर्भित करता है। इसको युक्ति या तकनीकी विभाजन का नाम दे सकते हैं।
वैशेषिक मत के अनुसार पत्यक्षाता से पदार्थ के पहचान प्रतीत होता हैं जिनको उपाधि अर्थात नाम दिया जा सकते हैं उस को ही पदार्थ मानते हैं इसे केवल शाब्दिक अर्थ एवं संदर्भ से जनना हैं जैसे आर्युवेद में सैन्धव का प्रयोग नमक के रूप में होता हैं शाब्दिक अर्थ में इसका अर्थ घोड़ा करके भी होता हैं इसे केवल संदर्भ से जनना है इसके उदाहरण केलिए अगर वैद्यजी सैन्धव के उपयोग के परामर्श करते हैं तो हमें समझना है वो नमक के बारे में बोल रहे हैं बिना समझे हम अनर्थ करके नमक के जगह पर घोड़े का उपयोग मनाना व्यर्थ है।
दूसरे अपने अनुभव से प्रतीत होता हैं जैसे अग्नि तेज या उष्ण अर्थात गरम होता है ऐसे ही जल शीतल होता है पूर्व समय पर जब विद्युत नहीं होते थे तो छोटे बच्चे बिना समझे बड़े ही शौक से दीपक (lantern) के समक्ष जाकर उसके स्पर्श करने से ही जान पाते ये हमारे लिए खतरा है तो ऐसे ही हमें भी कुछ जीजों को स्वी अनुभव से जनना होता है इसलिए पदार्थ को स्पर्श का प्रादुर्भाव भी मान जा सकते हैं
इन्हें अनुभव के हेतु ६ पद (वर्ग/ श्रेणी ) में वर्गीकृत अर्थात विभाजित कर सकते हैं ।
१) द्रव्य (substance)
२) गुण (quality)
३) कर्म ( activity)
४) सामान्य ( generality)
५) विशेष (particularity)
६) समवाय (inherence)
कुछ लोग जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी पर अक्षेप करते हैं उन्होंने नारि को नरक का द्वार कहा हैं वास्तव में नारी को उन्होंने नारी को नरक के द्वार नहीं कहते परन्तु यहां इसके अर्थ नारी नहीं माया करके होता हैं इनके प्रमाण शास्त्रों में भी बताया गया हैं अब विश्लेषण निचे दिया हैं इसके प्रकरण कर्म संन्यास में रत मनुष्यों के लिए यहां नारी के अर्थ स्त्री नहीं होता हैं उचित रूप में ये माया के लिए प्रयुक्त होता हैं नीचे प्रमाण के साथ बताया गया हैं संसार ह्रुत्कस्तु निजात्म बोध : | को मोक्ष हेतु: प्रथित: स एव || द्वारं किमेक नरकस्य नारी | का सर्वदा प्राणभृतामहींसा ।।3।। मणि रत्न माला शिष्य - हमें संसार से परे कौन ले जाता है? गुरु - स्वयं की प्राप्ति एक ही जो हमें संसार से परे ले जाती है और व्यक्ति को तब संसार से अलग हो जाता है। यानी आत्म बोध। शिष्य - मोक्ष का मूल कारण क्या है? गुरु- प्रसिद्ध आत्म बोध या आत्म अहसास है। शिष्य - नरक का द्वार क्या है? गुरु - महिला नरक का द्वार है। शिष्य - मोक्ष के साथ हमें क्या सुविधाएं हैं? गुरु - अहिंसा (अहिंसा)। अपके प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें
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