सृष्टि का कथन लिंग पुराण
१)अव्यक्त सदाशिव का अल्लिंग रूप से लिंग रूप अर्थात प्रपंच का निर्माण हुआ।
२) हमारे तीन लिंग रूप है अल्लिङ्ग लिङ्ग तल्लिङ्ग
३) अलिङ्ग अव्यक्त कारण है लिंग रूप का कारण तल्लिंग प्रधान कारण है। अल्लिंग में मेरा अर्थात सदाशिव रूप ही विद्यमान हैं।
४) लिंग रूप गन्ध रस शब्द स्पर्श रूपादि गुणों से युक्त हैं इसे कोई प्रपंच कहते हैं।
५) अल्लिंग रूप इन सब से वर्जित हैं ये अद्वैत तत्व है इनमें सिर्फ एक वस्तु प्रतिष्ठित हैं वहीं में हुं
६) तल्लिङ्ग रूप मेरा प्रधान कारण है इन कारण से ही प्रपंच बना हैं इनको विष्णु कहते हैं ये मेरा शैवा रूप को दर्शाता हैं
७) यह तत्व सात आठ ग्यारह रूपों में विभक्त है ये सब हमासे युक्त तथा उत्पन्न हुआ है इसलिए इन्हें विभु कहते हैं।
८) हमारे सात तत्वों में उदर्व एवं अधो भाग के सात लोक लोकान्तर अभिव्यक्त हैं।
९) सत्यतपज्ञानजनमर्हसुर्वभुर्वभुः ये उधर्व में स्थित हैं।
१०) अतलवितलसुतलतलातलमहातलरसातलपातलः ये सब अधो भाग में स्थित है
११) हमारे ग्यारह तत्वों में पांच ज्ञानेन्द्रियो पांच कर्मेंद्रियों एक मन सामसित हैं।
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