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वेदों में कंप्यूटर विज्ञान

भाषा का मूलभूत नियम का तहत प्रत्येक इकाई अन्तिम चरम एक निपता होता हैं निपता सिर्फ अव्यय बल्कि विशेषण हैं जैसे पुर्व संधान में स्वर ही जैसे अकारांत इकारन्त शब्दों में भेद होकर कोई शब्द पुल्लिंग स्त्रीलिंग उभय लिंग नपुंसक लिंग हो जाता हैं संस्कृत ऐसा शब्द जिसमें पुल्लिंग वा नपुंसक लिंग हैं जैसे कलत्रं दारा शब्द है यहां इनके शब्दिक अर्थ पत्नी होती है लेकिन ये शब्दों रूप पुल्लिंग और नपुंसक लिंग बनते हैं। पाणिनि महार्षि और वररूचि जी ने इनका सुत्र संधान करते हुए लिखते हैं। स्त्री वाचकानां पदनाम न लिङ्गवचनो भेदो इसके चलते प्राचीन समय यंत्र होते थे। क्यों कि आचार्य पिंगल के अनुसार प्रत्येक छन्द में २ पाद ४ पाद ३ पाद  होते हैं इनका प्रत्येक बाद में द्विपद लघु तथा गुरु का संकीर्ण हैं इनसे ही द्विमानीयसञ्चिका
द्विमानीयसङ्ख्या
द्विमानीयगवेषण
द्विमानीयान्वेषण
द्विमानपद्धति  
द्वैध
द्विगुण  
द्विमान
द्व्यंश
द्विमय
द्वय
द्वयि
द्विमान
इत्यादि शब्द binary system केलिए प्रयुक्त होता हैं इन शब्दों का प्रयोग अलग-अलग संदर्भ में लेते हैं ये चार अर्थ गणकिकरण केलिए प्रयुक्त होता हैं।
द्विमानीयसञ्चिका
द्विमानीयसङ्ख्या
द्विमानीयगवेषण
द्विमानीयान्वेषण
इसको संस्कृत चतुःछेद कहते हैं यहां संख्या के रूप में तत्वों को ग्रहण किया जाता हैं ऐसे ही ही आधुनिक कंप्यूटर भाषा में गण सामसित करतें हैं। इसलिए अनुमान है आधुनिक कंप्यूटर विद्वानों ने संस्कृत भाषा से ही सब कंप्युटर भाषा का विकास संस्कृत से ही किया है। इस पर हमारे सोधन जारी है हमारे सब विषयों को फेसबुक और बोल्ग पर शेर करते रहेंगे हमारे पोस्ट जरूर पढ़िए और लैक और शेर ज़रूर करिए धन्यवाद हर हर महादेव 🙏♥️

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