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गणपति भगवान के मयुरेश्वर अवतार रहस्य(गणेश पुराण)

गणेश परब्रह्म की मयुरेश्वर अवतार का रहस्य
 अष्टविनायक का अवतार में एक अवतार मोरेश्वर या मयुरेश्वर हैं कहानी इस प्रकार उद्धृत किया गया है जब मता पर्वती गं बीजाक्षर का तप की तो गणेश भगवान जो कि परब्रह्म परमात्मा हैं वो माता पार्वती का बेटे के रूप में अवतरित होने का वर दी अब गं बीजाक्षर में ऐसा क्या है जिससे भगवान गणेश खुश होते हैं।ग का अर्थ गुरुस्त वर्ग है इसमें सुक्ष्म तन्मत्र से गुरु तन्मत्र में अनुशिलन होने का रहस्य छुपा है समस्त गोचर वस्तु गुरु रूप में अभिप्रेत होता है जब सिन्धु नामक राक्षस अमृत मय सुवर्ण अन्डो से अमृत्व को पा लिया उन्होंने डर के मारे वो तीन अण्डे जो वर के रूप में दिया गया था उसे निगल लिया क्यों कि भगवान सुर्य देव ने उन्हें तुट जाने का अर्थ से बोलते थे कि इनके नष्ट होने पर सारे अमृत्व को खो देगा तो उन्होंने उसे निगल लिया अब परब्रह्म परमात्मा गणपति भगवान आम्र वृक्ष कि नीचे एक अण्डे को उनके गुरूत्व पैर को तब  आघात किया तो अण्डे फुट कर उनसे मयुर उत्पन्न हुआ उनको गणेश भगवान आपने वाहन बनाकर राक्षस के पेट चीर दिया उनसे अमृत मय अण्डे फुट गया और राक्षस जो तीनों लोकों में अन्तक मचा  दिया था उनके नाश हो गया भगवान गणेश जो देवताओं के कहने पर ये कार्य संपन्न किये थे उनसे समस्त जीव खुश हो गयें।
अब इस कथा के रोचक बातें?
आम के वृक्ष ही क्यों ।?
आम को फलो के राजा माना जाता है क्यों कि अमृतसार अर्थात अनेक मात्रा में जीवन तत्व होता हैं। इनसे वात पीत्त कफ संतुलित होकर अनेक रोग नष्ट होते हैं इसलिए अमृत अर्थात जो जीवन शक्ति युक्त ओजस् को बढ़ाते हैं इसलिए आम्र वृक्ष को अमृत संज्ञा दिया गया हैं इसलिए अमृत का नाश करने साजातीय तत्वों के अन्तर्गत भगवान गणेश जी उस वृक्ष चुने थे।
अब मयुर क्यों?
हमारे ओजा का मूल श्रोत सर्प शक्ति युक्त कुण्डली हैं उसके नाश करने में मयुर ही सक्ष्म हैं क्योंकि जब सर्प उर्धव शक्तिगत होता हैं तो उसके विपरीत मयूर अधोरूपी होता है तो मयूर उस कुण्डली शक्ति नाश कर सकते हैं इसलिए गणपति भगवान मयूर को वाहन रूप में चयन कर राक्षस और उसके समस्त सेना का नाश किया और मयुरेश्वर नाम से विख्यात हुए।
अब गणपति भगवान परब्रह्म परमात्मा कैसे इसका उत्तर गणो में अग्रेसर गणपति भगवान हैं उनको गणों के राक्षक माने जाते हैं इसलिए वेद में तथा गणपति अर्थवशिरस में उन्हें गणनां त्वा गणपतिं मन्त्र से संबंधित करते हुए उसको ही परब्रह्म कहा हैं आज केलिए इतना ही धन्यवाद हर हर महादेव जय श्री गणेश 🙏

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