गणपति भगवान का रोचक तथ्य
गणेश भगवान हमारे पांच ब्रह्म में से एक माना जाता हैं गण्पत्यागम के अनुसार गणपति भगवान का ३२ रूप हैं। इसे द्वात्रिंशति कहा जाता है इसके अंक गणित अनुसार ऐसा लिख सकते हैैं। ३और २ लेकिन यहां दोनों ० समाहित हैं।
तलम् न्याय में भगवान गणेश को
त्रय दुःख विनाशक और सत रजस तमस का त्रय रूपात्मक ब्रह्म मानते हैं।
शुन्य का अर्थ अभाव नहीं बल्कि पुर्ण हैं इसलिए भगवान गणपति भगवान को परिपूर्ण
ब्रह्म कहते हैं इनका कुछ रूप इस प्रकार हैं
१)बाल गणपति : यहां गणपति बाल रूप में गणपति इसलिए बताते हैं कि बकार को तंत्र में तो ओष्ट अर्थात अभ्यांतर भेद में मानते हैं। सब ज़बान के अग्र में अर्थात जिह्वाग्र में अग्नि रूप समाहित होता है तो ब कार अर्थात गणपति भगवान का बाल्य रूप प्रकट होता है इसका बाल गणपति की रूप में बताते हैं। जिस प्रकार बाल सुर्य उदित होने पर अर्थात शुभा के समय सुर्य तम्र वर्ण का होता हैं उसी प्रकार गणपति भगवान ताम्र और रक्त वर्ण के होते हैं लकार का अर्थ उत्पत्ति लकार पंच देवता में त्रिशक्ति सहित हैं इससे बाल गणपति का प्रक्ट्य होता हैं। इसका हाथ में कोमल पुष्प केला तथा कटहल आम्र फलों तथा ईख एवं मोदक होता है ये उदित सुर्य जैसे तम्र वर्ण का होते हैं।
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