वराह अवतार
म॒ल्वं विभ्र॑ती गुरुभृत भ॑द्रपापस्य॑ निधनं॑ तिति॒ज्ञुः॒ ।
व॒रा॒हेण पृथि॒वी सं॑विदा॒ना सूक॒राय॒ विजि॑हीते मृ॒गाय॒ ॥१२:१:४८॥ अर्थव वेद
सायन भाष्य :
हे पृथ्वी वराहेण ( विष्णु के वराह रुप से संविधान ( संबद्ध कृत) आप मल्वं अपने मीठी तत्त्व से युक्त पदार्थ से वा मल्वं , कृपणं , वा मुर्ख पुरूषों को सब गुरुभृत ( अच्छा मार्ग के शिक्षा देने वाले आचार्य) विभृति ( पालन करति हैं) एवं गुरुभृत ( भारी पदार्थ वाले पर्वत को भी उठाया है ) भद्रपापस्य (भले बुरे) निधनं (मृत्य तथा देह धारी जीवों) तितिज्ञः(स्वयं सहन करती हैं) मृगाय ( जंगली जानवर ) एवं सुकराय (जंगली सुअर ) को भी विजिहते (अपने विशेष रुप से सब को धारती हैं ) तकी
सब जीव स्वच्छन्द विचरन कर सकें
अध्यात्म भाष्यः
मेघों से संबद्ध कृत एवं मूल पोषण तत्व से एवं कृपण किरणों से समस्त जीवों बचाते हुए भारी पर्वत को उठाते हुए भले बुरे जिवों पालन करते हुए अन्त में मृत तथा वन्य मृगों को भी यथावत पालन करती हैं। आसनी से जीवो बाचाते हूवे सुर्य रुपि विषणु का विचरन करती हैं।
शतपथ ब्राह्मण १४:१:२:११
अथ वराहविहितम् इयत्यग्र आसीदितीयती ह वा इयमग्रे पृथ्वी व्यास प्रादेशमात्री
तमोमूष इति वराह उज्जधान सोऽ
अस्याः पतिः प्रजापतिस्तेनैवैनमतेतन्मिथुनेन
प्रियेण धाम्ना समर्धयति कृस्तनं मुखस्य तेऽद्य शिरो राधयासं
देव यजने पृथिव्या मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्ण इत्यासावेव बन्धुः
यहां इस यज्ञ में वराहविहित अर्थात भगवान के वराह अवतार द्वारा उखाड़ी हुई इस मिट्टी को से लेता हैं पुर्व काल में वराह अवतार धारण करके भगवान विष्णु उभारा था उस समय परिमाण प्रादेशमात्र था वो कार्य भगवान विष्णु प्रजापति ( प्रजा पालक के कारण हुवा था इसलिए इस मंत्र के अनुसार विष्णु को धरती के पति भी बोलते हैं क्यों कि उन्होंने धरती का पालन किया था। यहां पति शब्द पालक के रुप में उपयुक्त हुवा हैं।
हे पृथिवि अब आपके ऊपर देव यजन स्थान में हम यज्ञ के शिर स्थानीय महावीर का निर्माण करता हूं यज्ञ के लिए आपके मिट्टी को ग्रहण करता हुं उसके प्रतिमा को बनाने केलिए आपके पवित्र मिट्टी को ग्रहण करता है
इय॒त्यग्र॑ आसीन्म॒सुखस्य॑ ते॒ऽद्य विरोध राध्यासं देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः
म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥३७:५॥ यजुर्वेद
भगवान वारह ने जिस समय इस पृथ्वी को उठाया तब इसका परिमाण प्रादेशमात्र था हे पृथिवि अब आपके ऊपर देव यजन स्थान में हम यज्ञ के शिर स्थानीय महावीर का निर्माण करता हूं यज्ञ के लिए आपके मिट्टी को ग्रहण करता हुं उसके प्रतिमा को बनाने केलिए आपके पवित्र मिट्टी को ग्रहण करता है
कुछ लोग जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी पर अक्षेप करते हैं उन्होंने नारि को नरक का द्वार कहा हैं वास्तव में नारी को उन्होंने नारी को नरक के द्वार नहीं कहते परन्तु यहां इसके अर्...
Jai shree ram
ReplyDeleteJai Shri ram 🙏
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