महिषासुर के साथ विष्णु तथा भगवान शिव के युद्ध
महिषासुर एक प्रलयंकर दानव था उन्होंने यह वर पालकर रखा था हमारे मृत्यु किसी प्रकार के जीव अस्त्र से हमारे मृत्यु नहीं अमर होने के अर्थ यह नहीं हैं मृत्यु ना हो बहुत काल तक हमें संकट ना हो
अब पहले भगवान विष्णु तत्क्षण युद्ध क्षेत्र में आये और महिषासुर से युद्ध करने लगे अनेक प्रकार के अस्त्र एवं शास्त्रों से पर्वत के समान विसाल वस्तुओं से युद्ध हुआ तदन्तर विष्णु भगवान अपने गदा से असुर के शिर पर प्रहार कि और असुर मुर्छित हो गया तब असुर सेना हाहाकार मचा गया।
यहां पुराण के कथा में भयानक रस हैं अर्थात यहां यह करने का अर्थ हैं हम भगवान के भक्ति से बड़े से बड़े भयानक संगत में भी खड़े हो सकते हैं। यहां भगवान भक्ति कि महत्व समझाया गया हैं।
आगे वह दानव आपने भक्ति के बल से खड़ा हो गया और एक परिध लेकर असुर ने भगवान विष्णु पर असुर प्रहार किया इससे विष्णु भगवान मुर्छित हो गये तत्क्षण गरुड ने विष्णु भगवान को मुर्छित देखकर उन्हें युद्ध स्थल से दुर लेकर चला गया।तब देवता लोग भयभीत हो गए तब उनके भय को देखकर करुण भाव में शंकर भगवान वहां आये भगवान शिव कि भायनक युद्ध को देखने केलिए भगवान विष्णु भगवान अपने मुर्छित रूप को त्यागकर चले आये फिर भगवान शिव और विष्णु दोनों मिलकर वार करते हैं उससे कुपित होकर असुर स्थूल महिष रूप को धारण करके पुंछ को हिल्लते हुए बड़े पर्वत को उन पर फेंक दिया तब ऐसे युद्ध चलता गया तदन्तर शिव भगवान के हृदय भाग में असुर प्रहार किया कुछ नहीं हुआ फिर भगवान विष्णु उन पर अपने सुदर्शन चक्र छोड़ दिये उसे देखकर मायवी असुर सिंह का रूप धारण करके गरुड़ पर प्रहार किया उससे गरुड़ आहत हो गये फिर असुर महिष रूप धारण करके विष्णु भगवान को सींग से प्रहार करने लगे तब विष्णु ये सब देखकर अपने लोक चले गये विष्णु भगवान को चलते देख कर शिव भगवान भी पर कैलाश चले गये यहां पुराण में करुणा रस हैं भगवान आपके साथ हैं कभी आपको हारने नहीं देंगे फिर उनके पालयन करने के अर्थ यह नहीं होता हैं वह भाग गये। वह असुर को उचित समय में उचित योजना से असुर को नाश करने के उपाय सोचने केलिए चले गये। २०० ग्रेम दिमाग वाले ईसाई में यह बात कहां से घुसेगा पुराण भक्ति तथा शक्ति का प्रतिक हें पुराण काव्यात्मक हैं उसमें रस भाव होता है समझना चाहिए मानव जैसे अनपढ़ गंवार संस्कृत तथा संस्कृति कैसे समझेगा इसे धर्म नाश करना हैंं।
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