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हनुमान

आर्य समाज खण्डन
आक्षेप 
शिव पुराण शतरुद्र संहिता 
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को पैदा किया – [वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15]

मरुत वायु/हवा का पुत्र है और आपको बता दूं पार्वती बी हनुमान को अपना पुत्तर कहती है, अब सोचने वाली बात ये है हनुमान अंजना और हवा के बेटे मरूत का पुत्र है तो पार्वती का पुत्र कैसे हुआ.. 🤔
खण्डन 
चक्रे स्वं क्षुभितं शम्भुः कामबाणहतो यथा। स्वं वीर्यमपतयामास रामकार्यार्थमीश्वरः॥ 4॥
उस भगवान विष्णु प्रकृति रूप के मोहिनी देखते ही मन में अविद्या वृत्ति भेद न्याय से अपने आपको कामबाण से अर्थात इच्छा में विक्षुब्ध कर लिए कैसे इच्छा अर्थात प्रकृति तत्वों में परिवर्तन करने कि इच्छा से भगवान राम जी कार्य हेतु अपने आत्मा से जो कि सत्य है उससे एक सत्य अर्थात तेज को उत्सर्जन कर लिया 
तद्वीर्यं स्थापयामासुः पत्रे सप्तर्षयश्च ते। प्रेरणा मनसा तेन रामकार्यार्थमादरात्॥ 5॥
उस तेज‌ अर्थात अग्नि सोमात्मक रुप को सप्त ऋषियों ने एक भगवान शिव जी के इच्छा से एक पत्र में अर्थात राक्षा करने वाले आधार में स्थापित कि इस अग्नि सोमात्मक से जैविक तत्वों के निर्माण हुआ जैसे अणु के अणु स्यर पर उद्भूताणु अव्ययाणु विद्युताणु के निर्माण हुआ फिर परमाणु स्तर में इनके कार्य हुआ तो तो आगम्यविक्रानतिसर तत्व मधुर तत्व तथा मेथ तत्व तथा जलजनेकांगल तत्व के साथ विस्तृतिकरण से उसमें विखंडन हुआ फिर समग्र तत्व का निर्माण हुआ उससे त्वस्ता तत्व तथा पुषन तत्व का निर्माण हुआ वो सब एक रूपांतरित तेज में परिवर्तित हो गया है उसको सप्त ऋषियों ने भगवान राम के कार्य संरक्षण कर लिया।
तार्गौतमसुतायं तद्वीर्यं शंभोर्महर्षिभिः। कर्णवत् तत्ञ्जन्यां रामकार्यार्थमहितम्॥ 6॥
तब सप्त ऋषियों ने उस तेज़ को गौतमी कान्य अंजना के विशुद्धि द्वारा से उसके गर्भ में स्थापित करने हेतु वायु भगवान को दिये वायु भगवान उनके गतिक्रम बल से उस तेज को अंजना का विशुद्धि द्वारा अर्थात कर्ण के मार्ग से गर्भ में स्थापित किया।
ततश्च समये तस्माद्धनुमानिति नामभाक्र:। शम्भुर्जज्ञे कपित्नुर्महाबलपराक्रमः7
उसके बाद समय आने पर शिव तेज युक्त वृषाकपि के रुप में हनुमान जी का अवतार रुप प्रकट हो गया 
यहां तो कोई नियोग तो उसके गंध तक नहीं है लगता है आर्य समाजी जैविक विज्ञान नहीं जानते हैं

यह रामायण श्लोक इस प्रकार है 
मया वैरोचने यज्ञे प्रभविष्णुः सनातनः |
प्रदक्षिणी कृतः पूर्वम् क्रममाणः त्रिविक्रमः || ४-६५-१५
इस अनुवाद "एक बार, जब मैंने सर्वव्यापी और शाश्वत विष्णु के चारित्रिक रूप में त्रिविक्रम के रूप में प्रदक्षिणा किया, जब वह भगवान वामन ब्राह्मण छोडकर से अपने दिव्य रूप में बढ़े और सारे ब्रह्माण्ड को भरकर समस्त तीन लोकों को चलते हुए तीनों जगह फैल गए, तब मैंने उस वक्त वेदिका यज्ञ के समय इस्तेमाल किया, जो इंपीरियल बालि का वायरोचन का उत्तराधिकारी था।"
यहां इसका कोई संबंध नहीं है अतः सिद्ध होता है ये झूठ बोल रहे हैं।
अब हनुमत उपनिषद में प्रमाण है हनुमान जी माता पार्वती का पुत्र कैसे हैं देखिए
शिवपार्वत्योः संयुक्तो जातः शिवपुरे सुतः।
हनुमान्नाम्ना लोकेषु प्रसिद्धो भवतु मे॥३॥

इसका हिंदी अनुवाद होता है:
शिव और पार्वती के संयुक्त अर्थात शिव शक्ति संयोग आदि से शिवपुर अर्थात शिव भगवान के मानसज सृष्टि में एक पुत्र जन्मा वो
हनुमान नाम से जगत में प्रसिद्ध हो, ऐसी ही भगवान शिव के इच्छा हो।॥३॥
यहां जो अग्नि सोमात्मक रुप उत्पत्ति के बारे में दिया है वहीं बताया गया है अर्थात शिव भगवान अग्नि का रुप हैं पार्वती सोम के रुप हैं इन दोनों के इस तत्वों के संयोग से रुप उत्पत्ति तथा समस्त जैविक वा अन्य रूप का सृष्टि संभव होता है यह इसका तात्पर्य है अतः सिद्ध हनुमान जी भी माता पार्वती जी और भगवान शिव जी अंश थे तथा पुत्र थे।

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