इस ब्लॉग में हम सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात का पोल खोलते हैं । मुर्ख को संस्कृत तो नहीं पता चला हैं गीता का अनुवाद करने मुर्ख ने जो अक्षेप किया हैं उसके खण्डन करेंगे दूखिए अक्षेप : मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः। स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् यहां मुर्ख सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात इसका अर्थ करते हैं "अर्थात हे अर्जुन मेरे शरण लेने से पापों से उपजे ये लोग स्त्री , वैश्य ,शुद्र भी परम गति प्राप्त होते हैं। मुर्ख आगे उत्तर न पाया तो खण्डन कि भय से कोई तर्क नहीं दिया क्या लिखा रहा हैं देखिए! हम अपनी ओर से इस प्रयास को चुनौती देने केलिए कोई तर्क प्रस्तुत नहीं करना चाहते। अतः यहां हम गीता के प्रचनीतम् उपलब्ध शंकर भाष्य को उद्धृत करना चाहते हैं । जिसे हिन्दू के आदरणीय विद्वान आदि शंकराचार्य ने ८ वी शातब्दी में लिखे थे। वै लिखते हैं । "पापयोनयः पापा योनिः येषां ते पापयोनयः पापजन्मानः। के ते इति? आह -- स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः" अर्थात पापयोनि पापमय हैं योनि जन्म जिन का अर्थात पापी जन्मने वाले वे कौन हैं। इसका उत्तर स्त्री , वै...